۵ آذر ۱۴۰۳ |۲۳ جمادی‌الاول ۱۴۴۶ | Nov 25, 2024
समाचार कोड: 367376
7 अप्रैल 2021 - 11:58
ग़ाफ़िर छौलसी

हौजा / स्वर्गीय रज़ा सिरसिवी साहब की वह नज़म जो जो उन्होंने माँ के शीर्षक के तहत लिखी थी, आज तक शायरी के इतिहास में उसका उदाहरण नही मिल सका। कई शायरो ने इस विषय पर लिखा है, लेकिन यह रज़ा सिरसिवी की सार्वभौमिकता (आफ़ाक़ियत) तक नहीं पहुंच पाए।

हुज्जतुल-इस्लाम मौलाना सैयद ग़ाफ़िर रिज़वी फ़लक छौलसी द्वारा लिखित

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी। दिल को यकीन आए भी तो कैसे कि वह आदमी जो कल तक हमारी बज़्म की शोभा था और आज फ़रिश्तो की बज़्म मे पहुँच गया!

मौत उसकी है करे करे जिसका जमाना अफसोस 
यूं तो दुनिया में सभी आए है मरने के लिए 

शायरे आले ताहा वा यासीन जनाब रज़ा सिरसिवी साहब, एक अमूल्य रत्न थे, जिनके गुजरने से शायरी की दुनिया में ऐसा खला पैदा हो गया जिसे कोई नहीं भर सकता।

जब कोई व्यक्ति दुनिया छोड़ता है, तो उसके हलक़-ए अहबाब के घेरे में आहो बुका की आवाज़ें सुनाई देती हैं क्योंकि एक प्रियजन बिछड़ गया, लेकिन रज़ा सिरसिवी के दोस्तों का चक्र इतना विस्तृत और व्यापक था कि अपने तो अपने पराए भी उनकी मौत पर रोते हुए दिखाई दे रहे है।
जनाब रजा सिरसिवी हाजी, ज़ायर, अज़ादार और एक सच्चे आशिक़-ए अहलेबेत थे, जिसका इज़हार उनकी शायरी पढ़ने से जाहिर होता है। वह ऐसे मौलाई थे कि जब भी वह किसी धार्मिक विद्वान से मिलते तो उनकी आंखों में आंसू भर आते।

अगर हम शायरी के मैदान मे देखें, तो शायरी के मैदान के ऐसे शहसवार थे कि शिक्षकों के भी शिक्षक माना गया। कुछ कलाम तो ऐखे लिखे कि जिनकी मिसाल मिलना मुश्किल है। दिवंगत की एक नज़्म तो हर व्यक्ति की जबान पर खास व आम है।

स्वर्गीय रजा सिरसिवी की नज़्म जो उन्होने मां के शीर्षक के तहत लिखी थी, आज तक शायरी के इतिहास में उसका उदाहरण नही मिल सका। कई शायरो ने इस विषय पर लिखा है, लेकिन यह रज़ा सिरसिवी की सार्वभौमिकता (आफ़ाक़ियत) तक नहीं पहुंच पाए।

यह ऐसा है जैसे उन्होने यह नज़्म लिखकर कलम तोड़ दिया कि माँ के गुण में इससे बेहतर कोई नज़्म नहीं हो सकती।
प्यार कहते है किसे और मामता क्या चीज़ है
कोई उन बच्चों से पूछे जिनकी मर जाती है माँ 
मरते दम बच्चा अगर आ पाए ना परदेस से
अपनी दोनो पुतलिया चौखट पे रख जाती है माँ 

इस नज़्म हर शेर, हर शेर का हर मिसरा और मिसरे का हर शब्द इतना उपयुक्त नजर आता है कि अगर किसी शब्द के स्थान पर कोई उसका समतुल्य (हमवज़्न) भी लाकर रख दिया जाए तब भी वह मफहूम अदा नही कर सकता जो उनके कलाम अदा कर रहे है। 

हाँ! ऐसी गुणवत्ता का कवि कभी-कभी दुनिया में आता है और भगवान ने हमें इस नेमत से नवाज़ा था। वह कुछ समय तक हमारे बीच रहा और आज यह नेमत हमसे बिछड़ गई।

इन्ना लिल्लाहे वा इन्ना इलैहे राजेऊन

रजा सिरसिवी का दाग हमारी कौम के लिए एक नासूर की तरह है, जो जीवन भर रिस रिस कर सताता रहेगा, लेकिन हम यह सोचकर अपने दिल पर भरोसा कर रहे हैं कि कल तक वह हमें मौला अली (अ.स.) के फ़ज़ाइल सुना रहे थे और आज बज़्म अली (अ.स.) मे जाकर सीधे मौला की खिदमत मे नजरान-ए अक़ीदत पेश कर रहे हैं।
अली वालो का मरना भी कोई मरने मे मरना है
गए अपने मका से और अली के घर जा बैठे

अंत में,  बारगाहे खुदावंदी मे स्वर्गीय रज़ा सिरसिवी के लिए दुआ करता हूं कि परवरदिगार उनकी हर छोटी और बड़ी गलतियों को माफ करे।

टैग्स

कमेंट

You are replying to: .